New Delhi: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद के एक तहखाने में हिंदू प्रार्थनाओं की अनुमति देने को, चुनौती देने वाली याचिका को आज खारिज कर दिया। हिंदू प्रार्थना की अनुमति को चुनौती देने के लिए इस याचिका को मस्जिद समिति ने वाराणसी जिला अदालत में दाखिल करवाया था। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने मस्जिद समिति की याचिका को खारिज करते हुए कहा, “व्यास तहखाना में हिंदू प्रार्थनाएं जारी रहेंगी।”
पिछले महीने वाराणसी जिला अदालत ने फैसला सुनाया था कि पुजारी ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने जिसे “व्यास तहखाना” कहा जाता है, वहां पूजा अर्चना कर सकता है। जिला अदालत का फैसला शैलेन्द्र कुमार पाठक की याचिका पर दिया गया था, जिन्होंने कहा था कि उनके नाना, सोमनाथ व्यास ने दिसंबर 1993 तक पूजा-अर्चना की थी। पाठक ने आग्रह किया था कि, एक वंशानुगत पुजारी के रूप में, उन्हें तहखाना में प्रवेश करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए। मस्जिद के तहखाने में चार ‘तहखाने’ हैं, और उनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के पास है।
मस्जिद समिति ने याचिकाकर्ता के याचिका का खंडन किया था। इसके बाद समिति ने दलील दी और कहा कि तहखाने में कोई मूर्ति मौजूद नहीं थी, इसलिए 1993 तक वहां प्रार्थना करने का कोई सवाल ही नहीं था।
उच्चतम न्यायालय द्वारा वाराणसी जिला अदालत के आदेश के खिलाफ समिति की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। और उसके कुछ ही घंटों बाद समिति 2 फरवरी को उच्च न्यायालय चली गई। 15 फरवरी को दोनों पक्षों को सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने दलील दी “भारत के संविधान का अनुच्छेद 25, धर्म की स्वतंत्रता देता है। व्यास परिवार जिसने तहखाने में धार्मिक पूजा और अर्चना जारी रखा था, उसे मौखिक आदेश द्वारा प्रवेश करने से वांछित नहीं किया जा सकता था। अनुच्छेद 25 के तहत नागरिक अधिकार को मनमाने ढंग से कार्रवाई से नहीं छीना जा सकता है।
इसके शुरुआती दौर की बात करे तो एक संबंधित मामले के संबंध में जिला अदालत द्वारा आदेशित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI ) रिपोर्ट सर्वेक्षण ने पहले सुझाव दिया था कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के शासन के दौरान एक हिंदू मंदिर के अवशेषों पर किया गया था।
Riya
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